तन्हाई की उस रात में,
यूँ ही अपनी डायरी खोली,
यादो की उस सेहर में ,
एक गली मिली,
चलते चलते उस गलियारे में ,
जानी पहचानी सी एक खुश्बू मिली
ठेहर सा गया मैं……..
हाँ मैंने वो तुम्हारे प्यार की पहली निशानी
संजो के रखी थी,
उस लाल गुलाब का रंग फीका जरूर पड़ गया था ,
वो सिकुड़ सी गयी थी ,
एक दो पंखड़ियों ने तो उसका साथ भी छोड़ दिया था ,
लेकिन सच कहुँ खुश्बू अभी भी वही थी..
बिलकुल मोहक ..दिल को तस्सली देने वाली ..
ठेहरा रहा मैं ..
शायद नहीं .. उस लम्हे में वापस सा चला गया ..
यादें अभी भी ताज़ा हैं ,
कुछ ही दिन तो हुए थे ,
प्यार के इकरार को ,
रोज़ के मिलने ,हॅसने हँसाने को …
उस दिन तुमसे नहीं मिल पाया था ,
जेहन में एक तड़पन सी थी ,
आँखों में इंतज़ार सा था ..
मैंने फ़ोन मिलाया ..तुम ठीक थी ,
लेकिन मुझे सुकून कहाँ था ,
धड़कन के इतने पास ,और आँखों से इतनी दूर
मैं तुम्हें छूना चाहता था ,
अब दिन तुम्हारे बिन नहीं गुजरता ,
ये बताना चाहता था …
शायद तुम्हारे हालत भी कुछ ऐसे ही थे ,
मैंने फिर कॉल मिलाया ,
तुम्हारी आवाज़ में मासूमियत सी थी,
पूछा तुमने ….कब आओगे तुम ?
इतना ही तो बोल पाया ,
बस थोड़ी देर और ……
थम सा गया था मैं …
दो पल को तुमसे मिलने आया
ठेहरा चाहता था मैं ,
तुम मुझे रोकना चाहती थी ,
हर उस रोज़ की तरह ,
मैं भी रुकना चाहता था ,
बिलकुल इस पल की तरह ,
भूल जाना चाहता था की ,मुझे क्या करना है …
मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहता था ,
लेकिन मुझे जाना था ..
तुमने कहाँ कोई बात नहीं,
कल मिल लेंगे …
उफ़ .. वो भोलापन..
बस निहारता रहा तुम्हें,
हालांकि मैं गया ….
लेकिन जा ही तो नहीं पाया ….
जैसे तैसे काम ख़तम हुआ ,
मेरे फ़ोन ने ज़ोर की आवाज़ लगाई ,
मैंने आँखे बंद की ,
शायद दुआ में ..की ये तुम्हारा ही कॉल हो ,
मुझे नहीं पता था ,
भगवान मेरी दुआएँ इतनी जल्दी सुनता है ,
वो तुम ही थी ..
सुबह के 4 बज गए ..
मैं इस गलियारे में और ठहरना चाहता था ,
लेकिन कभी और …
सुबह उठ तुमसे मिलना भी तो है ….
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