Saturday, 3 September 2016

तुम

 जब भी करु तारीफ़ तुम्हारी ...शरमा सी जाती हो |
धीमे धीमे फिर मुस्काती हो |
हो पास अगर दर्पण कोई ..उसमे रूप अपना निहारा करती हो
मेरी नज़रो से फिर खुद को देखा करती हो |
झुका के नज़रे अपनी फिर पास मुझे महसूस किया करती हो ,पाओ न करीब मुझे तो ठंडी आहे भरती हो |
कानो की बालियाँ सहलाते
तस्वीर को मेरे फिर बारम बार देखा करती हो |
मुस्काते मुस्काते फिर रुक सी जाती हो ... बालो को अपनी सुलझाते मुझ में उलझ सी जाती हो |

प्यार तो करती हो ..बस मुझसे इजहार करते डरती हो ...दिल में मुझे छिपाये याद बोहोत करती हो |
गुमसुम कितनी भी रहो ..मेरा नाम सुनते ही खिल उठती हो |
जब भी मुझको देखा करती हो ..पनाहो में आने को मेरे मचल सी उठती हो|
दिल में अपने छिपाये मुझे ..आँखों में मेरी अपना प्यार ढूंढा करती हो |

नज़रे फेर लू अगर मैं ...घबरा सी जाती हो |
गुमसुम सी हो के ..एक टक बस मुझे देखा करती हो |
बे वजह ही कोई वजह फिर ढूंढा करती हो |
दबाये अपनी बातों को सीने में फ़ना मुझपे हुआ करती हो |
मेरी ही बातें दिल को अपने सुनाया करती हो ....
हाँ बस मुझे ही तुम चुपके चुपके चाहा करती हो ..